साहित्य

कवि व शिक्षक जगदीश ग्रामीण की स्वरचित रचना… मां अक्षरा आप हमें ज्ञान दो

मां अक्षरा
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मां अक्षरा आप हमें ज्ञान दो
बुद्धि विवेक नम्रता दान दो
आखर आखर जोड़ लूं मैं
शब्द शब्द सब ओढ़ लूं मैं
वाक्य सार्थक  गढ़ लूं मैं
अंतर्मन छू आगे बढ़ लूं मैं
ऐसा मां तुम निर्मल वरदान दो
मां अक्षरा——————
शीश पर शारदे तव हाथ रहे
सदा बस आपका साथ रहे
बुद्धि विवेक प्रवाह बना रहे
गौरवान्वित भाल सजा रहे
अधरों पर मां मंगलगान दो
मां अक्षरा—————–
कागज कलम सलामत रहें
पीर पराई हर पल हरते रहें
खुशियां अपनी कुर्बान करें
जन जन के अश्रुपान करें
कंठ को मां मधुर गान दो
मां अक्षरा——————
कर्मपथ पर  कदम चलें
हर हाथ मशाल थाम लें
मेहनत मूल्य हम जान लें
हाथ पांव छाले पहचान लें
सृजनशक्ति मां संधान दो
मां अक्षरा—————–
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स्वरचित
जगदीश ग्रामीण
रामनगर डांडा, थानों, देहरादून।

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