समाजसेवी स्व. बलदेव प्रसाद जोशी की कर्मभूमि बखरोटी गांव खंडहर में तब्दील
4० परिवारों से भरा पूरा बखरोटी गांव 2०१४ से वीरान
देहरादून। देहरादून—ऋ षिकेश मार्ग पर वीरपुर बडकोट (निकट रानीपोखरी—डांडी) से तीन किमी दूरी पर स्थित टिहरी जनपद के ग्राम पंचायत कोडारना का बखरोटी गांव आज खंडहरों में तब्दील हो गया है। किसी समय में गांव में 4० परिवारों से चहल—पहल रहने वाला यह गांव आज खंडहर है। लेकिन इसकी माटी में आज भी स्व. बलदेव जोशी के आदर्शो, संस्कारों, समाजोपयोगी कार्यो की खुशबू आ रही है। शिक्षक व कवि जगदीश ग्रामीण ने अपने ‘दर्द-ए—गांव’ में इस गांव की वर्तमान तस्वीर को अपने आंखों से देखकर बयां किया है। उनके अनुसार बखरोटी गांव स्व. बलदेव प्रसाद जोशी की जन्मभूमि व कर्मभूमि रही है। यह गांव आज भले ही खंडहरों में तब्दील हो गया हो,लेकिन इसकी माटी के कण—कण से स्व. बलदेव प्रसाद जोशी के आदर्शो,संस्कारों व समाजोपयोगी कार्यो की खुशबू आ रही है। स्व. बलदेव प्रसाद ने जीवन भर खादी का प्रचार-प्रसार किया। चरखा चलाया, खादी के कपडे पहने। गांव वालों को प्रेरित किया। मद्यनिषेध के लिए गांव—गांव पैदल जाकर जन जागरण किया। भोगपुर,थानो,रानीपोखरी आदि क्षेत्रों में बच्चों की टोलियां लेकर नारे लगाते हुए वे पैदल चलते थे। बखरोटी गांव आदर्श गांव कहलाता था। इस गांव में कोई भी व्यक्ति मदिरापान, मांसाहार, धूम्रपान नहीं करता था। गांव के लोगों से रिश्ता करने के लिए लोग बहुत डरते थे क्योंकि इस गांव के आदर्शो, संस्कारों के साथ घुलना—मिलना इतना सरल व सहज नहीं था। लेकिन जो परिवार इस गांव के वाशिंदों से नाते—रिश्ते में जुड़ जाता था वह इनके जैसा ही संस्कारित हो जाता था।
बलदेव प्रसाद जोशी स्वयं शिक्षक थे। उन्होंने उस कठिन दौर में भी शिक्षा और संस्कारों के प्रचार प्रसार के लिए धरातम पर काम किया। उनके परिवार में अधिकांश लोग शिक्षक हैं। इस गांव का कोई भी व्यक्ति देहरादून, ऋ षिकेश या अन्य स्थानों पर जहां भी मिलेगा, उनकी नई पीढ़ी में आज भी वहीं संस्कार वहीं आदर्श देखने को मिलेंगे। इसका श्रेय कर्मयोगी बलदेव प्रसाद जाशी को जाता है। गांव की माटी से प्रेम करने वाले सज्जन अंतिम दिनों में अस्वस्थ हुए तो उनके परिवार के लोग उनको रानीपोखरी लाए और वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। स्व. बलदेव प्रसाद जोशी के कार्यो की चर्चा आज भी हर महफिल में हर चौपाल में होती है। लेकिन दु:खद है कि स्व. बलदेव प्रसाद जोशी की कर्मभूमि आज खंडहर में तब्दील हो गयी है। हालांकि उनके द्वारा लगाए गए पौधे आज यौवन पर है। जिंदगी भर अपना क्षण—क्षण देने वाले धरातलीय कर्मयोगी स्व. बलदेव प्रसाद जोशी को सच्च्ी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनकी कर्मभूमि को खंडहरों से मुक्ति दिलाकर पुन: इस गांव को आबाद कर सकें।
उन्होंने कहा कि यह गांव 2०१४ में आबादी रहित हो गया था।पहले इस गांव में लगभग 4० परिवार रहते थे, लेकिन आज यह खंडहर है। मेरा तो यह कहना है कि इस गांव को, इस धरोहर को बचाया जाना चाहिए। स्व. बलदेव की इस कर्मभूमि को जो भी देखने जाएगा, निश्चित रूप से वह इस महापुरुष के कार्यो से प्रेरित होकर समाज को लाभान्वित करेगा। उन्होंने कहा कि उनकी इस कर्मभूमि को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए। इसका रखरखाव किया जाए। जिससे आने वाली पीढ़ी उनके योगदान को स्मरण कर लाभान्वित हो सकेगी।
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