धर्म-संस्कृति

विरासत में छाया ‘अभिमन्यु’ का चक्रव्यूह

गढ़वाली लोक नाट्य ‘चक्रव्यूह’ में पांडव और कौरवों के बीच युद्ध को देखने के लिए उमड़ पड़े लोग

देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2024 के पांचवें दिन आज अभिमन्यु द्वारा रचे गए चक्रव्यूह का नाट्य मंचन देखने के लिए भारी संख्या में लोग उमड़ पड़े और वे इस शानदार प्रस्तुति वाले नाट्य मंचन के दृश्य देखकर बेहद आकर्षित एवं हैरान हुए।आज की सांस्कृतिक संध्या के खास मेहमान मुख्य अतिथि अरुण कुमार सिंह ओएनजीसी के अध्यक्ष एवं सीईओ तथा अति विशिष्ट अतिथि विधानसभा अध्यक्ष उत्तराखंड श्रीमती रितु खंडूरी ने सितार के सुरों को सुनने में दिलचस्पी दिखाई।

रीच संस्था के सचिव आरके सिंह व अन्य मुख्य आयोजकों की मौजूदगी में भूमि पूजन के साथ हुए इस चक्रव्यूह गढ़वाली लोक नाट्य प्रस्तुति के पटकथा व लेखक प्रोफेसर दाताराम पुरोहित हैं, जिनकी गढ़वाली लोकनाट्य कलाकारों की टीम ने शानदार ढंग से चक्रव्यूह का मंचन किया। इस मंचन को मौके पर भारी संख्या में मौजूद लोगों ने बखूबी सराहा। इस चक्रव्यूह की प्रथम प्रस्तुति वर्ष 2001 में गंधारी गांव में हुई थी।आज की शानदार प्रस्तुति में चक्रव्यूह की रचना की गई और उसका वर्णन विस्तार से कलाकारों द्वारा किया गया। जौनसार के रणसिंगा वादक टीम में अनिल वर्मा, चंदन पुंडीर ने अपनी भूमिका निभाई I जबकि धाद संस्था की ओर से ढोल वादक रुद्रपुर के अध्यक्ष अखिलेश दास, रुद्रप्रयाग से रहे अन्य कलाकारों में राकेश कुमार, कुदरत, मुकेश कुमार ने ढोल, दमाऊ तथा बंकोरी बजाई।

विरासत महोत्सव में चक्रव्यूह की नाट्य प्रस्तुति वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूआत चक्रव्यूह के मंचन से प्रारंभ होते ही लोगों में उत्साह उमड़ पड़ा I चक्रव्यूह वास्तव में महाभारत का एक लोकप्रिय एवं ऐतिहासिक चित्रण है जो कि महाभारत के युद्ध पर आधारित है Iधार्मिक मान्यताओं ने गढ़वाल क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को गढ़ा हैं और गढ़वाल की ऐसी ही एक अमूल्य सांस्कृतिक विरासत है पांडव नृत्य, जिसे पांडव लीला के नाम से भी जाना जाता है। यह विस्तृत धार्मिक नृत्य और नाट्य प्रदर्शन कर विभिन्न बस्तियों में मनाया जाता है, जिनमें से अधिकांश रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों की मंदाकिनी और अलकनंदा घाटियों में बसे हैं। जब कड़ाके की सर्दी उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों को अपनी चपेट में ले लेती है, तो गढ़वाल के कई छोटे-छोटे गांवों के निवासी पांडव नृत्य का अभ्यास करके खुद को सक्रिय रखते हैं। यह औपचारिक नृत्य पांडवों की यात्रा के उपलक्ष्य में और उत्तराखंड के घरों और गांवों में खुशियाँ लाने के लिए किया जाता है। भक्ति भावना पर आधारित यहां की संस्कृति पौराणिक और ऐतिहासिक रूप से एक विशेष स्थान रखती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि धर्म और अधर्म के बीच अंतर पहचानने वाले मनु के सभी पुत्र इस संस्कृति को जीवित रखने का संकल्प लेते हैं। पांडव नृत्य पांडव भाइयों की कहानी बताता है,जो उनके जन्म से लेकर स्वर्गारोहिणी यात्रा, स्वर्ग की यात्रा शुरू करने तक की है। उनकी यात्रा के विविध तत्व ढोल की थाप पर आयोजित इस अनुष्ठान नृत्य में शामिल हैं। उत्तराखंड की पांडव लीला में महाभारत के ’धर्म युद्ध’ को दोहराया गया I नृत्य नाटिका कीचक वध (कीचक का वध), नारायण विवाह (भगवान विष्णु का विवाह), चक्रव्यूह (गुरु द्रोण द्वारा डिजाइन की गई एक सैन्य रणनीति), गेंदा वध (डमी गैंडे की बलि) जैसे विभिन्न कथानकों को छूती है।

कलाकार पाँच पांडवों के पात्रों का चित्रण करते हैं, जिनमें युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन, नकुल सहदेव होते हैं। पांडवो का रूप धारण करने वाले सभी कलाकार ढोल-दमाऊ, पहाड़ी वाद्ययंत्रों की धुन पर नृत्य करते चक्रव्यूह कथानक को पांडव लीला करते हुए मंचन किया गया, जिसमें कौरवों ने सबसे चतुर युद्ध रणनीति अपनाकर अभिमन्यु को मार डाला।

चक्रव्यूह की गढ़वाल नाट्य प्रस्तुति में जिन कलाकारों ने अपनी भूमिका निभाई उनमें क्रमशः निर्देशक,पंकज नैथानी पांडव युधिष्ठिर,अंकित उछोली भीम,विनोद कुमेड़ी, द्रौपदी,शालिनी नकुल,पवन चमोली-सहदेव,नमित सात्यकि,जतिन उत्तरा,शमिता राणा कृष्णा,अर्पिता भटनागर,अर्जुन, सुधीर डंगवाल-अभिमन्यु,अंकित भट्ट-कौरव दुर्योधन, हरीश पुरी- दुशासन, पंकज डुंगरियाल- जयद्रध,पंकज नैथानी-गुरु द्रोण,पवन पुरोहित- कर्ण,अभिषेक सेमवक- शल्य,रवीन्द्र नेगी- लक्ष्मण,आशुतोष-कृपा चार्य,अर्जुन राणा- अश्वधाम,रॉबिन- शकुनि,विकेश-गजपेयी संगीत डॉ. संजय पांडे, डॉ लता तिवारी पांडे, प्रिया जाटव, मनीष खाली, गोकर्ण बमरारा, अभिषेक बहुगुणा, शालिन्द्र मैठाणी, हुडका मोचंद,आरसी जुयाल बांसुरी,सौरव ढोल,अखिलेश दमाऊ,दीपक भांगपुरा,राकेश कुमार व मुकेश शामिल है I
चक्रव्यूह के आयोजन में श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के महंत देवेंद्र दास जी एवं विश्वविद्यालय के छात्रों का विशेष योगदान रहा।

मशहूर सितार वादक ‘समन्वय सरकार’ की सांस्कृतिक संध्या का शानदार रहा सितार वादन

सितार पर ‘समन्वय सरकार’ की थिरकती उंगलियों से निकलने वाले बेहतरीन राग ने लोगों को झूमने पर किया।
विरासत के सांस्कृतिक मंच पर समन्वय सरकार ने राग सुध कल्याण से अपनी मनमोहक प्रस्तुति की शुरुआत की, जिसने मौजूद लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया। तबले पर पंडित मिथलेश झा के साथ संगत करते हुए,समन्वय सरकार ने तीन ताल में लयबद्ध जोड़ के बाद जटिल अलाप में बदलाव करते हुए प्रस्तुति को सहजता से आगे बढ़ाया।
देश-विदेश के जाने-माने लोकप्रिय सितार वादक समन्वय सरकार की प्रस्तुति ने विरासत महोत्सव में उमंग और उल्लास का माहौल बना दिया। उनके द्वारा सितार पर थिरकती उंगलियां के जादू से निकलने वाले उमंग भरे सुरताल श्रोताओं एवं दर्शकों को अलग ही आकर्षित कर रहे थे। 

 विरासत महोत्सव की आज की तीसरी सांस्कृतिक संध्या के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम में पं. साजन मिश्रा और पं. स्वरांश मिश्रा द्वारा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति का खूब आनंद उठाया। सांस्कृतिक संध्या विरासत के दो खास मेहमानों पंडित साजन मिश्रा और स्वर्णांश मिश्रा के हिंदुस्तानी गायन की बहुत ही शानदार प्रस्तुति श्रोताओं को बहुत अधिक पसंद आई। दोनों ही कलाकारों की जुगलबंदी ने संगीतमय वातावरण बना दिया। पंडित शुभ महाराज तबले पर,पंडित धर्मनाथ मिश्रा हारमोनियम पर, श्री विनायक सहाय, सारंगी पर तर्श सेठी और नितिन शर्मा तानपुरा पर रहे। 

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