देहरादून

एसीसी के कैडेट बने ग्रेजुएट, आईएमए की मुख्यधारा में शामिल

इंडियन मिलिट्री एकेडमी में एसीसी विंग की 117वें कोर्स की ग्रेजुएशन सेरेमनी
अकादमी के समादेशक ने जेएनयू की डिग्री से एसीसी के 29 कैडेटों को किया दीक्षित
सालभर तक आईएमए में प्राप्त करेंगे प्री कमीशन मिलिट्री ट्रेनिंग, फिर बनेंगे अफसर
कैडेट रितुराज सिंह को मिला गोल्ड मेडल,चैंपियन कंपनी का खिताब बोगरा के नाम
देहरादून । आर्मी कैडेट कालेज (एसीसी) के 29 कैडेट शनिवार को पास आउट होकर इंडियन मिलिट्री एकेडमी की मुख्यधारा में शामिल हो गये हैं। इनमें 12 कैडेट साइंट स्ट्रीम के और 17 कैडेट ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम के शामिल हैं। एसीसी में चयन होने से पहले इन कैडेटों ने बतौर सिपाही तीन—चार साल की सैन्य सेवा सेना की अलग—अलग यूनिटों में की हुई है। तीन साल तक एसीसी में रहने के बाद यही कैडेट आज ग्रेजुएट होकर सैन्य अकादमी की मुख्यधारा में शामिल हो गये हैं। अब ये सालभर तक सैन्य अकादमी में प्री मिलिट्री ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद सेना में बतौर अफसर पारी की नई शुरुआत करेंगे।
शनिवार सुबह को आईएमए के चेटवुड सभागार में आयोजित एसीसी विंग की 117वें बैच की ग्रेजुएशन सेरेमनी में इन कैडेटों को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्नातक डिग्री से दीक्षित किया गया। अकादमी के समादेशक ले. जनरल हरिंदर सिंह ने कैडेटों को प्रमाण पत्र प्रदान किये। आेवरऑल परफॉरमेंश के लिए कैडेट रितुराज सिंह को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ गोल्ड मेडल से नवाजा गया। बोगरा कंपनी को कमांडेंट बैनर प्रदान किया गया। विभिन्न प्रतिस्पर्धाआें में बेहतर प्रदर्शन करने वाली कंपनी को यह बैनर प्रदान किया जाता है। आईएमए की मुख्यधारा में शामिल हुए कैडेट अगले सालभर तक अकादमी में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद पास आउट होंगे। एसीसी उन होनहार युवाआें को सैन्य अफसर बनने का अवसर देता है जो शुरुआती चरण में कतिपय परिस्थितियो के कारण अफसर नहीं बन पाते हैं और बतौर सिपाही फौज में भर्ती होते हैं। चार-पांच साल तक सेना में रहते हुए यही युवा मेहनत के बूते अपने सपने साकार करते हैं और एसीसी के माध्यम से सैन्य अफसर बनकर सेना में पारी की नई शुरुआत करते।
इस अवसर पर अकादमी के समादेशक ने एसीसी से पास आउट होकर आईएमए की मुख्यधारा में शामिल हो रहे कैडेटों को शुभकामना दी। अपने संबोधन में समादेशक ने कहा कि सैन्य जीवन में कामयाबी हासिल करने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत होना बेहद जरूरी है। उम्मीद जताई कि सेना की बारीकियों से भलीभांति वाकिफ एसीसी कैडेट अकादमी में मिलने वाले सैन्य प्रशिक्षण का लाभ भावी सैन्य जीवन में उठाएंगे। इससे पहले एसीसी विंग कमांडर ब्रिगेडियर शैलेश सती ने कालेज की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि तीन वर्षीय पाठ्यक्रम के दौरान कैडेटों को सर्विस, साइंस, ह्यूमेनिटीज आदि विषयों में पारंगत बनाया गया है। कोविड-19 महामारी के चलते कैडेटों के सामने खड़ी चुनौती पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। समारोह में साइंस व ह्यूमेनिटीज वर्ग में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले कैडेटों को स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक से सम्मानित किया गया। कोविड को देखते हुए समारोह में अकादमी के चुनिंदा वरिष्ठ अधिकारी ही मौजूद रहे।
बेहतर प्रदर्शन करने वालो को मेडल
मेडल              कैडेट
गोल्ड मेडल     रितुराज सिंह
सिल्वर मेडल   विक्रम गौतम
ब्रांज मेडल  डुबाल राणा
सिल्वर मेडल (सर्विस)  डुबाल राणा
सिल्वर मेडल (ह्यूूमेनिटीज) बीरेन्द्र सिंह
सिल्वर मेडल (साइंस)    रितुराज सिंह
कमांडेंट बैनर  बोगरा कंपनी
किचनर कालेज से सियाचिन बटालियन तक
देहरादून। इंडियन मिलिट्री एकेडमी परिसर में स्थित आर्मी कैडेट कालेज (एसीसी) सेना के होनहार सिपाहियों को अफसर बनने का अवसर देती है। बतौर सिपाही सेना में भर्ती होने वाले युवाआें को एसीसी में चयन होने के लिए कठिन परीक्षा पास करनी होती है। एसीसी की नींव किचनर कालेज के रूप में वर्ष 1929 में तत्कालीन फील्ड मार्शल बिडवुड ने मध्य प्रदेश के नौगांव में रखी थी। 16 मई 1960 को किचनर कालेज को आर्मी कैडेट कॉलेज के रूप में पहचान मिली। इसका शुभारंभ देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्णा व थल सेनाध्यक्ष केएस थिमय्या ने किया था। यहां से पास आउट कोर्स की पहली पीआेपी 10 फरवरी 1961 को हुई थी। वर्ष 1977 में आर्मी कैडेट कालेज को देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से संबद्ध किया गया। इसके बाद वर्ष 2006 में एसीसी विंग (सियाचिन बटालियन) आईएमए का अभिन्न अंग बन गया। आर्मी कैडेट कालेज उन सिपाहियों को सैन्य अफसर बनने का अवसर देता है जो कि किन्ही परिस्थितियों की वजह से शुरुआती दौर में अफसर बनने में असफल रह जाते हैं या फिर उनके परिवार की आर्थिक स्थिति माली रहती है। लिहाजा एेसे युवा बतौर सिपाही सेना में भर्ती हो जाते हैं। अब तक एसीसी से साढ़े चार हजार से अधिक सैनिक बतौर अफसर भारतीय सेना में शामिल हो चुके हैं। तीन साल का प्रशिक्षण/डिग्री पूरा करने के बाद चौथे साल में एसीसी के कैडेट आईएमए की मुख्यधारा में शामिल होते हैं और सालभर बाद पास आउट होकर सैन्य अफसर बनते हैं।
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