धर्म-संस्कृति

सहने तक सुख असहनता में दुःख

 देहरादून। श्रद्धा विश्वाश मनुष्य में होता ही है, इनके होने में जो इनको विकसित नही करता उसका सुधार होना मुश्किल है। सुख और दुख  के मध्य एक रजत रेखा है, जहां तक तुम सह लेते सुख, और जहाँ से सहना मुश्किल हो जाता है वहाँ से दुःख शुरू हो जाता है।
     उक्त विचार ज्योतिष पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं ने नैशविला रॉड स्थित में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि तप से आत्मा बलवती होती है, तप का मतलब अनेक कष्टों को सहन करना है तभी कार्य मे समर्पण हो, ऐसी भावना से मनोबल बढ़ता है। बुद्धि तीब्र होती हैं, आत्मा इतनी बलिष्ट हो जाती है कि जीवन मे कितना अंधी तूफान क्यों न आजाय कोई फर्क नही पड़ता । प्रेम करने की योग्यता सबमे होती हैं किंतु सेवा करने की शक्ति किसी किसी मे होती है, जिसकी श्रद्धा होती है। उसके अनुसार उसका आचरण भी होता है इस प्रकार श्रद्धा मनुष्य मात्र का एक नैसर्गिक धर्म है। प्रेम व्योहार अगर संसार मे किया जाय तो बिवैले लोग भी आपके गले के आभूषण बन सकते हैं , भगवान शंकर ने शीतलता का रूप चंद्रमा अपने माथे पर धारण किया है इसलिये ठंडे माथे होने के कारण  बिवैले जीव भी उनके हो गए । वासुदेव ,देवकी शुद्ध बुद्धि पवित्र भावना का मेल होने पर अनुकूल परिश्थिति हो जाती है यही भगवान का प्राकट्य है । इस अवसर पर प्रकाश चंद कला  प्रवीन काला श्रीमती उमा देवली, श्रीमती रेखा बहुखंडी, श्रीमती सोनम सरकार, श्रीमती सुषमा नैथानी , बंसीधर कोठियाल, आचार्य दामोदर सेमवाल आदि ने अपनी उपस्थिति दी।
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