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मंगसीर बग्वाल : पारंपरिक रणसिंघा, ढोल, दमाऊ की थापों और पारम्परिक भैलों, रांसो, तांदी नृत्य के साथ माधो सिंह भंडारी की विजय गाथा का लोकोत्सव…

देहरादून/उत्तरकाशी। उत्तराखंड के कोने-कोने में लोग बरसों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाए हुए हैं। इसी कड़ी में एक कदम अपनी संस्कृति, परंपराओं को अक्षुण रखने हेतु उत्तरकाशी में अनघा माउंटेन एसोसिएशन और स्थानीय लोगों के सहयोग से विगत 16 बरसों से मंगसीर बग्वाल का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें देश के कोने-कोने से लोग ही नहीं बल्कि विदेशी भी हर बरस यहाँ आते हैं। जो यहां की लोक संस्कृति को देख अभिभूत हो जाते हैं।

गौरतलब है कि सीमांत जनपद उत्तरकाशी के विभिन्न क्षेत्रों में दीपावली के ठीक एक माह बाद मंगसीर बग्वाल का आयोजन किया जाता है। मान्यता है की गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल में तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं में घुसकर लूटपाट करते थे। तब राजा ने माधो सिह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र से गढ़तांग गली,नेलांग के रास्ते सेना भेजी थी।

भोट प्रान्त दावाघाट (तिब्बत) में तिब्बती आक्रमणकारियों को पराजित करने के पश्चात विजयी होकर जब वीर भड़ (शक्तिशाली) माधो सिंह अपने सैनिकों के साथ वापस टिहरी रियासत में पहुंचे तत्कालीन समय से ही विजयोत्सव के रूप में टिहरी रियासत (सकलाना, सम्पूर्ण जौनपुर, रवांईं, टकनौर, बाड़ाहाट, बाड़ागड्डी, धनारी, धौंत्री प्राताप नगर क्षेत्र) में मंगशीर बग्वाल मनाने की परंपरा चली आई आ रही है। कहा जाता है कि चीन तथा भारत के बीच मैकमोहन रेखा के निर्धारण में वीर माधो सिंह द्वारा रखे गये मुनारों का सीमांकन के समय ध्यान रखा गया था। तब से लेकर आज तक मंगसीर के महीने में उक्त बग्वाल का आयोजन किया जाता है।

इसका एक दूसरा प्रमुख कारण यह भी है कि कार्तिक दीपावली के एक माह बाद अपनी खेती-बाड़ी के काम को सम्पन्न कर, अनाज को अपने कुठार-भंडार में रखकर फुरसत से मंगसीर की बग्वाल हर्षाेल्लास के साथ मनाते हैं।गढवाल के विभिन्न क्षेत्रो में आज भी इस प्रथा का प्रचलन है।

मार्गशीर्ष बग्वाल, बाड़ाहाट और अनघा माउंटेन एसोसिएशन के संयोजक तथा सामजिक सरोकारों से जुड़े लोकसंस्कृति कर्मी अजय पुरी कहतें हैं की उत्तरकाशी में 2007 से स्थानीय लोगों की पहल पर रामलीला मैदान में इस आयोजन को बाडाहाट की मंगसीर बग्वाल के नाम से किया जाता है। जिसमे गढ़भोज, गढ़बाजणा, गढ़ बाजार, गढ़ संग्रहालय का तीन दिवसीय कार्यक्रम होता है।

अगली पीढ़ी को हम क्या संस्कृति और परंपरा प्रदान कर सकते हैं इस उद्देश्य हेतु विभिन्न विद्यालयी छात्र छात्राओं के मध्य गढ़ भाषण, गढ़ निबंध, गढ़ चित्रण, गढ़ फैशन शौ, वर्ततोड (रस्साकस्सी), मुर्गा झपट, पिठु गरम की प्रतियोगिता सम्पन्न की जाती हैं। जो कि बच्चों में बग्वाल का प्रमुख आकर्षण होता है जबकि भैलों, सामूहिक रांसो, तांदी नृत्य के साथ मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है। इस बार से गढ़वाली भाषा के मुहावरों के प्रोत्साहन हेतु गढ़ औखाण की बाल प्रतियोगिता भी आयोजित की जा रही है।

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