उत्तराखंड

सोना पीतल विवाद छोड़ो, तीर्थ की मर्यादा बचाओ जनाब!

दिनेश शास्त्री

देहरादून। केदारनाथ धाम को सजाने संवारने के बीच हुई कतिपय अवांछित घटनाओं ने शासन और प्रशासन को खामियों के प्रति आगाह किया है। यह अलग बात है कि इस दिशा में ठोस पहल नहीं हुई है। इससे कई बार निराशा का भाव उत्पन्न होता है।
यह पहला मौका है जब केदारनाथ धाम में अपेक्षाकृत सुगम बदरीनाथ धाम की तुलना में ज्यादा तीर्थयात्री पहुंचे हैं। इस कारण कई सारी अव्यवस्थाएं होना भी स्वाभाविक है। केदारनाथ धाम में मात्र दो माह में दस लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं, यह अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। रिकॉर्ड के बावजूद धाम की गरिमा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने की कोशिशें भी समानांतर रूप से चल रही हैं। ताजा मामला बाबा केदार के गर्भगृह को स्वर्णमंडित किए जाने से उपजा है। केदारनाथ के वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित और बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के सदस्य श्रीनिवास पोस्ती की इस चिंता से असहमति का कोई कारण नजर नहीं आता कि मंदिर को लेकर की जा रही बयानबाजी अंततः तीर्थ की गरिमा को ठेस पहुंचाने का सबब बनती है।
आम तौर पर मंदिर समिति इस तरह का दान करने वालों के नाम सार्वजनिक नहीं करती। बदरीनाथ में भगवान का स्वर्ण सिंहासन बना कर देने वाले श्रद्धालु के बारे में हम यह देख चुके हैं। केदारनाथ के मामले में भी यही हुआ। अब अगर किसी श्रद्धालु ने सोना बता कर पीतल भी लगा दिया तो किसी के पेट की वजह समझ में नहीं आती। अव्वल तो उस श्रद्धालु ने ऐसा किया नहीं होगा कि भगवान के साथ धोखा करे, लेकिन अगर मान भी लिया कि पीतल पर सोने की पॉलिश की होगी तो इसका दंड खुद भोले बाबा दे देंगे, इसके लिए फिक्र में दुबला होने की जरूरत क्या है? जिसका कर्म उसी को फल भी मिलेगा, यह बात क्यों नहीं लोगों को समझ में नहीं आती। यह दो भक्तों के बीच का द्वंद नहीं होना चाहिए। मेरी जानकारी के अनुसार सोना पीतल विवाद उठाने वाले भी बाबा के उतने भी भक्त हैं जितना दान देने वाला भक्त। फिर यह स्थिति क्यों उत्पन्न हो रही, यह समझ से परे है। आपको याद होगा जब श्रद्धालु ने मंदिर का गर्भगृह स्वर्ण मंडित किया, सवाल तब भी उठे थे और अब भी उठ रहा है कि जो सोना मंदिर में लगाया गया वह पीतल में बदल गया है। संयोग से पहले भी और अब भी आरोप लगाने वाले वही लोग हैं।
बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति इस प्रकरण में अपना पक्ष स्पष्ट कर चुकी है, जबकि इस बीच प्रदेश के पर्यटन, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह की दीवारों पर सोने की प्लेट को लेकर उठे विवाद को देखते हुए सचिव धर्मस्व को उच्च स्तरीय जांच के आदेश देने के साथ ही इस मामले को अनावश्यक तूल देकर चारधाम के तीर्थों को विवाद में न डालने की बात कही है। मामले की जांच गढ़वाल मंडलायुक्त को सौंपी गई है और इसमें विशेषज्ञों के साथ उस सुनार को भी जोड़ा गया है जिसने गर्भगृह में सोना लगाया। इस तरह जांच रिपोर्ट आने तक इंतजार किया जाना चाहिए।
वैसे प्रथम दृष्टया इस मामले में लगाए जा रहे आरोपों को सही नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि जिस श्रद्धालु ने केदारनाथ मंदिर में सोना और तांबा दान किया है, उसी ने वहाँ पूरा काम भी कराया है। इसलिए किसी प्रकार के भ्रष्टाचार की गुंजाइश नहीं दिखती।
इस स्थिति में एक आशंका यह उठाई जा रही है कि इसके पीछे कोई टूल किट तो नहीं जो यात्रा को पटरी से उतारने का उपक्रम हो। टूल किट शब्द इस संदर्भ में प्रयुक्त कर रहा हूं कि यह मामला इतना बड़ा नहीं था, जितना बनाया गया है। सीधी और खरी बात यह है कि यदि कोई आशंका थी तो उचित मंच पर बात रखी जा सकती थी। वैसे भी शरीर पर पहना गया सोना कालांतर में अपनी आभा खो देता है। फिर जहां लाखों लोगों की सांसें जा रही हों, वहां लगे सोने का अपनी आभा खो देना स्वाभाविक ही है, यदि ऐसा न होता तो आज तक सुनारों की दुकानें बंद हो गई होती। वे साल भर पुराने गहनों को साफ कर रोजी रोटी चलाते हैं, कौन सा लोग वर्ष भर नया सोना खरीदते हैं?
बहरहाल सुव्यवस्थित व निर्बाध गति से चल रही चारधाम यात्रा पर इस प्रकरण से कुप्रभाव तो पड़ेगा ही साथ ही जो श्रद्धालु मंदिर को दान करने को तत्पर रहते हैं, वे इस तरह के विवादों को देखते हुए शायद अपना इरादा बदल सकते हैं, तो नुकसान किसका होगा और सबसे बड़ी बात यह कि श्रद्धालु अगर केदारनाथ धाम आने का इरादा छोड़ दें तो इन आरोप प्रत्यारोपों का लाभ किसे होगा? यह गंभीरता से सोचने की बात है। मंदिर समिति के सदस्य श्रीनिवास पोस्ती से लेकर पर्यटन मंत्री तक एक ही बात कह रहे हैं, तो बात समझ में आनी चाहिए थी लेकिन शायद भोलेनाथ ही इस विवाद का समाधान नहीं चाहते, अन्यथा अब तक सद्बुद्धि दे चुके होते।
आपको एक संयोग और बता दूं, विगत सात – आठ जून तक केदारनाथ धाम में तीर्थ यात्रियों का दैनिक आंकड़ा 25 हजार के औसत पर था। उसी दौरान घोड़ा संचालकों द्वारा दिल्ली के श्रद्धालुओं के साथ मारपीट की घटना प्रकाश में आई तो दूसरे दिन से तीर्थयात्रियों की संख्या लगातार घटने लगी और आज यह संख्या आधे पर आ गई है। हालांकि यह एक अकेला कारण नहीं है, और भी वजहें हैं लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में कोई भी घटना अथवा दुर्घटना देश दुनिया की नजरों से छुप नहीं सकती।
एक बात और कहने का मन है। मंदिर समिति का खजाना लबालब भरा है। भगवान आशुतोष पर्याप्त कृपा कर रहे हैं। ऐसे में क्या यह नहीं होना चाहिए कि मंदिर के पास एक विशाल स्वागत कक्ष बना कर हर श्रद्धालु को कड़कती ठंड में एक कप चाय पिला दी जाए तो जो अनुभूति श्रद्धालु को होगी, उससे व्यवस्था की सारी खामियां ढक सकती हैं। निसंदेह 2013 की आपदा के बाद मंदिर समिति अभी अपनी अवस्थापना जरूरतों के लिए जूझ रही है। कर्मचारियों के रहने की अभी मुक्कमल व्यवस्था नहीं है। बहुत कुछ किया जाना शेष है लेकिन एक भव्य शेड बना कर थके हारे श्रद्धालुओं को जलपान और जानकारी देने की व्यवस्था करने से तो किसी ने नहीं रोका है, फिर इस दिशा में ध्यान क्यों नहीं जा रहा है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि मंदिर समिति महज इतना भर कर दे तो जो श्रद्धालु पैसे वालों को तरजीह देने का आरोप लगाते देखे जा रहे हैं, उस शिकायत पर पूर्ण विराम लग सकता है।
निसंदेह केदारनाथ धाम में सुव्यवस्थित यात्रा के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। श्रीनिवास पोस्ती ने भी बातचीत के दौरान इस बात को स्वीकार किया लेकिन सरकार इस दिशा में कब सोचेगी, यह देखने की जिज्ञासा तो शायद सबके मन में होगी।
अब आखिरी बात, यात्रा मार्ग पर मूल्य नियंत्रण की प्रभावी पहल की जहां तत्काल जरूरत है, वहीं घोड़ा संचालकों को भी सभ्य और सुसंस्कृत बनाने की जरूरत है। दुकानदार अच्छा व्यवहार करें, रात्रि विश्राम के लिए रहने की व्यवस्था श्रद्धालु को न चुभे, और मृदुल स्वभाव हो तो पैसा खुद ब खुद मिल जायेगा। एक ही दिन में मालामाल होने की धारणा तो छोड़नी ही होगी। ध्यान रहे केदारनाथ आने वाला श्रद्धालु आपकी रोजी रोटी चला रहा है। जिस दिन वह नाराज हो जायेगा, उस दिन भीख मांगने पर भी कोई नहीं देगा, यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतना ही अच्छा होगा। अन्यथा कब बाबा की भृकुटी तन जायेगी, कौन जानता है। तब कितने बेकसूर प्रभावित होंगे, यह ध्यान रखना जरूरी है। इन संकेतों को समझ लेंगे तो यात्रा से जुड़े तमाम लोगों का कल्याण ही होगा, वरना फैसला भोलेनाथ ही करेंगे।

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