राज्य के एकमात्र वैस्कुलर सर्जन डा. प्रवीण जिंदल ने स्कूलों में किया अध्ययन
मधुमेह, धूम्रपान व शराब का अधिक सेवन से भी हो सकती नसों की बीमारी
शुगर व कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण करने के साथ ही स्वस्थ्य जीवनशैली जरूरी
देहरादून । अधिक समय तक एक स्थान पर बैठने से ही नहीं बल्कि देर तक खड़े रहने से भी नसों से संबंधित बीमारी हो सकती है। स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक भी अक्सर नसों से संबंधित इस तरह की बीमारी यानी वैरिकोज की समस्या से ग्रसित हो रहे हैं। क्योंकि अधिकांश स्कूलों में शिक्षक खड़े होकर ही बच्चों को पढ़ाते हैं। वैस्कुलर सोसाइटी ऑफ इंडिया की कार्यकारी समिति के सदस्य व उत्तराखंड के एकमात्र वैस्कुलर सर्जन डा. प्रवीण जिंदल ने देहरादून व आसपास के क्षेत्र के स्कूलों में अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। इसके अलावा मधुमेह, धूम्रपान व शराब का सेवन व अनियमित जीवनशैली भी नसों से जुड़ी बीमारियों का प्रमुख कारण हैं।
राष्ट्रीय संवहनी दिवस के उपलक्ष में हरिद्वार रोड स्थित एक होटल में नाटको फार्मा के सहयोग से आयोजित पत्रकार वार्ता में डा. जिंदल ने यह जानकारी साझा की है। प्रतिवर्ष छह अगस्त को राष्ट्रीय संवहनी दिवस मनाया जाता है। डा. जिंदल का कहना है कि रक्त वाहिकाएं शरीर के विभिन्नि अंगों में आक्सीजन युक्त रक्त ले जाने वाली धमनियां व डीआक्सीजेनेटेड रक्त को हृदय में वापस ले जाने वाली नसें हैं। आक्सीजन के बिना शरीर का कोई भी अंग काम नहीं कर सकता है। धमनियों व नसों के रोग एेसी स्थितियों का कारण बन सकते हैं जो या तो रक्त की आपूर्ति को रोकें या कम कर सकते हैं। इससे रक्त के थक्के बनना या धमनियों का सख्त होना जैसे कारण दिख सकते हैं। इसके अलावा चलने—फिरने पर पैर या टांगों में दर्द अथवा थकावट महसूस होना, स्ट्रोक, पेट दर्द व गैंग्रीन जैसी बीमारी भी नसों में खून की आपूर्ति बाधित होने से हो सकती है।
डीप वेन थ्रोम्बोसिस यानी नसों में रक्त के थक्के जमने से व्यक्ति की मौत तक हो सकती है। वहीं क्रोनिक शिरापरक रोग व वैरिकोज नसें भी व्यक्ति के लिए प्राणघातक साबित हो सकती है। डा. जिंदल का कहना है कि अन्य राज्यों की तुलना में नसों से संबंधित बीमारी से ग्रसित मरीजों की संख्या उत्तराखंड में अधिक है। क्योंकि यहां पर लोग धूम्रपान व शराब का सेवन अधिक करते हैं। नसों से जुड़ी बीमारियों का समय पर इलाज नहीं करने से व्यक्ति के शरीर को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए कम दूरी तय करने में ही थकावट महसूस होना, पैरों व टांगों में सूजन, पैर के रंग का परिवर्तन होना, सुन्नपन, पैर की उंगलियों का काला पडऩा, पेट में तेज दर्द होना, लकवा जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत वैस्कुलर चिकित्सक से सलाह लेकर इलाज करना चाहिए। स्वस्थ्य जीवनशैली, धूम्रपान व शराब का सेवन नहीं करना, संतुलित आहार, शुगर व कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण करने से भी नसों से संबंधित बीमारियों से बचा जा सकता है।
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सैनिकों व उनके आश्रितों को ओपीडी शुल्क माफ
देहरादून। पिछले 18 वर्षों से सीएमआई अस्पताल में सेवाएं दे रहे डा. प्रवीण जिंदल उत्तराखंड के एकमात्र वैस्कुलर सर्जन हैं। वह अब तक हजारों मरीजों का इलाज कर चुके हैं। सैन्य अस्पताल में भी वह मरीजों का इलाज करते हैं। खास बात यह कि सेना में सेवारत सैनिक अथवा उनके आश्रित का इलाज करने पर वह किसी प्रकार का आेपीडी शुल्क नहीं लेते हैं। इसके पीछे सेना के प्रति उनका गहरा लगाव है। सेवारत सैनिकों को मुफ्त सर्जिकल सेवाएं देने पर उन्हें ‘सुश्रुत सम्मान’ भी मिल चुका है।
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