पीएम मोदी ने इस कविता से किया अपना भाषण खत्म, आप भी पढ़िए।
देहरादून। दून के परेड ग्राउंड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जहां अपने भाषण की शुरुआत गढ़वाली बोली से की, वहीं अंत कविता की कुछ पंक्तियों से किया।
जहां पवन बहे संकल्प लिए,
जहां पर्वत गर्व सिखाते हैं,
जहां ऊंचे नीचे सब रस्ते
बस भक्ति के सुर में गाते हैं
उस देवभूमि के ध्यान से ही
उस देवभूमि के ध्यान से ही
मैं सदा धन्य हो जाता हूं
है भाग्य मेरा, सौभाग्य मेरा,
मैं तुमको शीश नवाता हूं, मैं तुमको शीश नवाता हूं
और धन्य-धन्य हो जाता हूं।
तूम आंचल हो भारत मां का,
जीवन की धूप में छांव हो तुम,
बस छूने से ही तर जाए,
सबसे पवित्र, वो धरा हो तुम
बस लिए समर्पण तन-मन से
बस लिए समर्पण तन-मन से
मैं देवभूमि में आता हूं,
हे भाग्य मेरा, सौभाग्य मेरा
मैं तुमको शीश नवाता हूं।
और धन्य-धन्य हो जाता हूं
जहां अंजुली में गंगा जल हो
जहां हर एक मन बस निश्छल हो
जहां गांव-गांव में देश भक्त
जहां नारी में सच्चा बल हो
उस देवभूमि का आशीर्वाद लिए
मैं चलता जाता हूँ।
उस देवभूमि का आशीर्वाद
मैं चलता जाता हूं,
है भाग्य मेरा, सौभाग्य मेरा
मैं तुमको शीश नवाता हूं।
मंडवे की रोटी
हुड़के की थाप
हर एक मन करता
शिवजी का जाप
ऋषि मुनियों की है
ये तपो भूमि
कितने वीरों की ये जन्मभूमि
मैं देवभूमि आता हूं
मैं तुमको शीश नवाता हूं
और धन्य धन्य हो जाता हूं
मैंन तुमको शीश नवाता हूं
और धन्य धन्य हो जाता हूं।
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