उत्तराखंड

सरकार की सदिच्छा पर क्यों भारी पड़ रहा सिस्टम?

चिकित्सा सेवा चयन आयोग का मामला

सरकार और सिस्टम के बीच द्वंद

दिनेश शास्त्री
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समय रहते फैसला लेकर युवाओं के संभावित आक्रोश को रोक दिया लेकिन एक बड़ा सवाल यह उभर रहा है कि प्रदेश सरकार द्वारा एहतियात की तमाम कोशिशों के बावजूद सिस्टम में वे कौन लोग हैं जो पलीता लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। ताजा मामला उत्तराखंड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड का है। यहां एक पूर्व मंत्री की बेटी के लिखित परीक्षा में बेहद कम अंक लाने पर साक्षात्कार में अधिकतम अंक दे दिए गए। प्रारंभ में यह आरोप उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं को एक छतरी के नीचे लाने वाले बॉबी पंवार ने लगाया था। अभी दो दिन पूर्व ही उन्होंने इस प्रकरण का न सिर्फ खुलासा किया बल्कि जिम्मेदार अफसरों के पास मुद्दा उठाया भी किंतु श्रेय ले गए विद्यार्थी परिषद वाले।गुरुवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भेंट कर उनसे उत्तराखण्ड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड के द्वारा किए गए चयन में धांधली की शिकायत की। मुख्यमंत्री ने परीक्षा में शुचिता, पारदर्शिता और निष्पक्षता के मद्देनजर तत्काल प्रभाव से चिकित्सकों की चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी, साथ ही प्रकरण की गहनता से जांच के आदेश दिए हैं।

गौरतलब है कि प्रदेश में विभिन्न भर्तियों में धांधलियों को लेकर मुख्यमंत्री लगातार सख्त रुख दिखाते आए हैं। सरकार द्वारा कठोर नकल विरोधी कानून भी लागू किया गया। यहां तक कि साक्षात्कार में अंक देने का फार्मूला भी नियत किया गया। यानी चाक चौबंद व्यवस्था का भरोसा दिया गया, किंतु ऐसा क्या हुआ कि चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड की भर्ती विवादों का केंद्र बन गई। जाहिर है पूर्व मंत्री की बेटी कम अंक के बावजूद चयनित हुई तो मामला खुलना ही था। इसे बॉबी पंवार नहीं तो कोई और उठाता और इस प्रकरण को उठायाअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारियों ने। उन्होंने मुख्यमंत्री से भेंट कर उत्तराखण्ड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड के माध्यम से की जा रही आयुर्वेदिक व होम्योपैथिक चिकित्सकों की भर्ती में धांधली का संदेह जताते हुए चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड की प्रक्रिया की गहनता से जांच करने की मांग की। वैसे यही मांग दो दिन से बॉबी पंवार भी कर रहे थे लेकिन उनकी बात शायद ऊपर नहीं पहुंच सकी।
बहरहाल सीएम धामी ने शिकायत का संज्ञान लेते हुए उत्तराखण्ड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड के द्वारा किये गये चयन एवं की जा रही चयन प्रक्रिया को तत्काल स्थगित करते हुए सम्पूर्ण प्रक्रिया की गहनता से जांच के निर्देश दिए हैं। इससे एक और आंदोलन फिलहाल टल गया है। वरना सरकार की फजीहत होनी तय थी। कारण यह भी है कि यह विभाग खुद मुख्यमंत्री के पास है। इसलिए भी मामला गंभीर हो जाता है।
वैसे देखा जाए तो उत्तराखंड में भर्तियों में धांधली कोई नई बात नहीं है। राज्य बनने के बाद हुई दरोगा और पटवारी भर्ती में ही धांधली उजागर हो गई थी। उसके बाद से कौन सी भर्ती साफ सुथरी हो पाई या निर्विवाद रही, यह सब आप जानते हैं। विधानसभा भर्ती में शुरू से 2022 तक किस तरह रेवड़ियां बंटी, यह किसी से छिपा नहीं है।
पिछले पांच वर्षों के दौरान हुई भर्तियां भी कहां धांधली से अछूती रही। तमाम भर्तियों में एक के बाद एक हाकम सिंह दिखते रहे और युवा ठगे जाते रहे। पैसा तंत्र पर इस कदर हावी हो गया कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद हर भर्ती विवादों में आ गई। जिस लोक सेवा आयोग को दूध का धुला माना जाता था, उसके कार्मिक भी घपले में शामिल पाए गए। यहां तक कि आयोग के एक सदस्य महिला अभ्यर्थी से अनुचित अपेक्षा को लेकर चर्चा में रहे। अन्य सदस्य साफ सुथरे रहे होंगे, इस बात की गारंटी क्या है? अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की अंधेरगर्दी तो जगजाहिर है।
पानी जब सिर के ऊपर से गुजर गया तो धामी सरकार ने हिम्मत दिखाई और नकल विरोधी कानून, साक्षात्कार में पारदर्शिता का इंतजाम किया तो उसके बावजूद व्यवस्था के छेद बंद नहीं हुए। चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड का ताजा मामला इसका प्रमाण है। सहकारिता भर्ती में भी तो इसी तरह के आरोप लगे थे।
निसंदेह सिर्फ आरोप के आधार पर किसी व्यवस्था को दोषी नहीं माना जा सकता लेकिन जब प्रथमदृष्टया साक्ष्य घपले की ओर इशारा करते हों तो साफ हो जाता है कि नौकरियों के मामले में सरकार जितना भी फूंक फूंक कर कदम रखे, व्यवस्था के छेद बने रहेंगे। सरकार डाल डाल और घपलेबाज पात पात का खेल बहुत हो चुका। अब इस पर विराम लगना चाहिए। निसंदेह सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अगर इस तरह की शिकायतें सामने आ रही हैं तो देखना होगा कि इकबाल किसका खत्म हो गया है? इसके लिए तो फिर वही बुलडोजर की जरूरत याद आती है। जब तक ठोस इच्छाशक्ति का प्रदर्शन नहीं होता, तब तक इस तरह की घटनाएं सामने आती रहेंगी और योग्य युवा छले जाते रहेंगे। सीधी सी बात है कि इस तरह की घटनाओं से अब तक न जाने कितने अयोग्य लोग घुसपैठ से चयनित हो चुके होंगे, उनसे प्रदेश के भले की अपेक्षा कौन कर सकता है?
मामला बहुत गंभीर है। शायद प्रदेश की धामी सरकार को ही नियति ने व्यवस्था सुधारने का जिम्मा सौंपा हो, वरना अभी तक तो हाकम सिंह ही भर्ती करते आ रहे थे।

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