वृक्षारोपण व कलश यात्रा के साथ शिवपुराण शुरू
देहरादून। जो शिव के स्वरूप जानकर लिंगार्चन करता है, उसमें आत्मयोग और सम्पूर्ण शास्त्र योग प्राप्त होते है। जो शिव को पूजने से पर्यावरण संरक्षण का जीवन रक्षण का सन्देश प्राप्त होता है। एक शिव ही सृष्टि उत्पति पालन संहार करने वाले हैं। 11 बार शिव स्मरण और रूद्रीपाठ करने से सब सिद्धी प्राप्त होती है।
यह बात अनारवाला भद्राकाली मन्दिर में हरेला पर्व पर जामुन आम विल्व बृक्ष रोपण कलश यात्रा के साथ शुरू हुई शिवमहापुराण कथा ज्योतिष्पीठ ब्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगांई ने कही।
उन्होंने कहा कि कलियुग में सबसे सरल उपाय शिव पूजन कल्याण कारी समझकर जी जो विधि पूर्वक पूजता है वह सिद्धी प्राप्त करता है।
शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का विधान है। वह इसलिए की शिवलिंग के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है तो उसे चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। शिवलिंग को ज्योति माना गया है और उसके आसपास के क्षेत्र को चंद्र। आपने आसमान में अर्ध चंद्र के ऊपर एक शुक्र तारा देखा होगा। यह शिवलिंग उसका ही प्रतीक नहीं है बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड ज्योतिर्लिंग के ही समान है।
”अर्द्ध सोमसूत्रांतमित्यर्थ: शिव प्रदक्षिणीकुर्वन सोमसूत्र न लंघयेत ।।इति वाचनान्तरात।”
सोमसूत्र :
शिवलिंग की निर्मली को सोमसूत्र की कहा जाता है। शास्त्र का आदेश है कि शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, अन्यथा दोष लगता है। सोमसूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि भगवान को चढ़ाया गया जल जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है।
क्यों नहीं लांघते सोमसूत्र
सोमसूत्र में शक्ति-स्रोत होता है अत: उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं और वीर्य निर्मित और 5 अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। जिससे शरीर और मन पर बुरा असर पड़ता है। अत: शिव की अर्ध चंद्राकार प्रदशिक्षा ही करने का शास्त्र का आदेश है।
▪️तब लांघ सकते हैं :
शास्त्रों में अन्य स्थानों पर मिलता है कि तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढके हुए सोम सूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता है,
लेकिन ‘शिवस्यार्ध प्रदक्षिणा’ का मतलब शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
आचार्य ममगांई जी ने शिव पूजन परिक्रमा की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बांई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी जल स्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।राम चन्द्र जी ने रावण बध के बाद अयोध्या लौटते वक्त पुष्पक विमान में बैठे जानकी जी से कहा था यहां सागर तट पर रावण को मारने से पहले हमनें महादेव का पूजन किया था और वे हमारे उपर प्रसन्न हुए थे और यह लिंग जिसमें भगवान विराजमान हैं उस लिंग का नाम रामेश्वर है राम नें भी शंकर कृपा से विजय प्राप्त व राज सता प्राप्त की आदि प्रसंग पर भाव विभोर लोग हुए।
इस मौके पर पूर्व प्रधान नवीन, आचार्य पुष्कर कैन्थोला विजय थापा, सरस्वती प्रधान, आचार्य राहुल सती, आचार्य दिवाकर भट्ट, कमल किशोर, पूना प्रधान,अनिल प्रधान, उर्मिला अंजू प्रधान, बबली थापा, किशन साही, अनिता साही, आचार्य अंकित भट्ट, सावित्री प्रधान, विजन प्रधान, काजल प्रधान, विशाल, विनित, जयन्ती, संगीता, महेश प्रधान, सावित्री प्रधान, कमला प्रधान, करूणा थापा, मीरा आदि मौजूद थे।
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