कारगिल दिवस पर शिक्षक विजय प्रकाश, अंशी कमल और बेलीराम कंसवाल की श्रीदेव सुमन पर लिखी कविता पढ़ें
युद्ध था भीषण कठिन वह,शत्रु चोटी पर चढ़े थे।
*न सिन्दूर पोंछो न चूड़ी उतारो*
न सिंदूर पोछो, न चूड़ी उतारो,
न बोलो कभी भी,कि मर वह गया है।
तिरंगे में लिपटा, जो सुत भारती का,
सदा के लिए हो, अमर वह गया है।।
हुआ हँसते – हँसते जो, कुर्बां वतन पे,
उसी की महक से, महकता चमन ये,
कहें कैसे हम वह, नहीं इस जहाँ में,
दिलों में तो कर सबके घर वह गया है।
तिरंगे में लिपटा, जो सुत भारती का,
सदा के लिए हो, अमर वह गया है।।
वतन को ही महबूब, माना था जिसने,
वतन को पिता मातु, जाना था जिसने,
बहाना न आँसू, शहादत पे उसकी
भले करके छलनी, जिगर वह गया है।
तिरंगे में लिपटा, जो सुत भारती का
सदा के लिए हो, अमर हो गया है।।
कभी पीठ रण में, दिखाई न जिसने
कभी शान माँ की, घटाई न जिसने
है जब तक हिमाला, मुकुट भाल माँ का,
न कहना कभी भी, गुजर वह गया है।
तिरंगे में लिपटा, जो सुत भारती का,
सदा के लिए हो, अमर हो गया है
जमाना सदा उसकी, गाथा कहेगा,
अमर था अमर है, अमर ही रहेगा,
रहें चाँद सूरज, ये जब तक गगन में,
अमर नाम अपना, तो कर वह गया है।
तिरंगे में लिपटा, जो सुत भारती का,
सदा के लिए हो, अमर वह गया है।।
*अंशी कमल*
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