देहरादून

यहां गर्भवती महिला ने रास्ते में दिया बच्चे को जन्म

यातायात के अभाव में रास्ते में ही बच्चे को जन्मा

जगदीश ग्रामीण 

देहरादून। पहाड़ की महिलाओं के लिए पहाड़ पर पहाड़ जैसी समस्याएं हैं। जिनसे उन्हें हर दिन दो-चार होना पड़ता है। ऐसा ही एक मामला सौंग घाटी – घुत्तू क्षेत्र का सामने आया है जिसमें एक महिला ने यातायात सुविधा के अभाव में बच्चे को रास्ते में ही जन्म दिया।ईश्वरानुकम्पा से जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।

25 जुलाई को प्रातः ही ग्राम पंचायत “हल्द्वाड़ी” के गंन्धकपानी (सेरा) की एक गर्भवती महिला श्रीमती संगीता देवी पत्नी श्री दिनेश सिंह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रायपुर के लिए परिजनों के साथ निकली। गर्भवती महिला कुछ किलोमीटर गंन्धकपानी से रंगड़ गांव तक पैदल चलते-चलते थक गईं। विषम परिस्थितियों में महिला ने बच्चे को रास्ते में ही जन्म दे दिया। किसी तरह स्थानीय लोगों ने मदद कर उनको दुकान के एक कमरे में आश्रय दिया और महिला ने वहीं बच्चे को जन्म दिया।
यह क्षेत्र विधानसभा डोईवाला और विधानसभा धनोल्टी और विकास खंड रायपुर विकासखंड जौनपुर विकास खंड चंबा का सीमावर्ती क्षेत्र है।
आमतौर पर बरसात के मौसम में चर्चाओं में घुत्तू क्षेत्र बना रहता है। यह क्षेत्र सौंग नदी के तट पर स्थित है। और आज भी सड़क, स्वास्थ्य और संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।
यह क्षेत्र देहरादून से मात्र केवल 15 किलोमीटर की दूरी पर हैं। राजधानी के समीप होने पर भी यहां पर आज तक किसी प्रकार की सुविधाएं यहां के लोगों को नहीं मिल पाई हैं। यहां पर स्थानीय शासन प्रशासन को क्षेत्र की किसी भी प्रकार की असुविधाओं की कोई खबर ही नहीं रहती है। शासन प्रशासन यहां पर अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागता नजर आताः है। कई बार आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। बरसात में इन दिनों सौंग नदी का जलस्तर अत्यधिक बढ़ जाता है जिससे कि क्षेत्रवासियों की वैकल्पिक सड़क मालदेवता से गन्धकपानी वाली बाधित हो जाती है। ऐसे में क्षेत्रवासियों के पास एक ही मात्र बिकल्प होता है पैदल यात्रा। जी कि जोखिम भरा सफर आए दिन क्षेत्र के लोग दूर-दूर से तय करते हैं। ग्राम पंचायत पसनी, सेरा, रगड़ गांव, कुण्ड, तौलियाकाटल, घुड़साल गांव, लडवाकोट के ग्रामीण यहां से 10-10 और 12-12 किलोमीटर सौंग नदी के किनारे पैदल चलकर देहरादून के लिए अपना सफर तय करते हैं।
अनिल सिंह ऐरला (प्रधान ग्राम पंचायत सेरा ) ने बताया कि बरसात में आए दिन ऐसी घटनाएं यहां पर आम बात है। हर बरसात के मौसम में तीन-चार माह यहां बहुत ही विकट परिस्थितियां हो जाती हैं और ऐसी विकट परिस्थितियों में बीमार हो जाने पर उपचार के लिए मरीज को कुर्सी या चारपाई के सहारे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रायपुर, मालदेवता या देहरादून पहुंचाया जाता है। क्योंकि यहां पर किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। यहां के लोग आज भी अपना जीवन विषम परिस्थितियों में व्यतीत कर रहे हैं और अपनी जान को जोखिम में डालकर पैदल ही शहर का सफर तय करना ही मात्र एक विकल्प है। उन्होंने शासन प्रशासन से मांग की है कि इस क्षेत्र में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
अनिल सिंह ऐरला ने बताया कि मूलभूत सुविधाओं की कमी के लिए गांव के लोग स्थानीय जनप्रतिनिधियों को इसका जिम्मेदार ठहराते हैं जबकि सड़क, संचार स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए विधायको, सांसदों को सत्ता में लाया जाता है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों का स्तर है सिर्फ शासन प्रशासन से क्षेत्र के विकास के लिए मांग करना और हम मांग आज से नहीं कई वर्षों से करते आ रहे हैं किंतु शासन-प्रशासन इतना लापरवाह हो गया है कि क्षेत्र की आवाज उनके कानों तक पहुंच ही नहीं रही है। हम लोगों का दुर्भाग्य है कि हम राजधानी के इतने नजदीक होते हुए भी आज अपना जीवन ऐसी विकट परिस्थितियों में काट रहे हैं मानो जैसे कि हम 18वीं सदी में अपना जीवन यापन कर रहे हों। आज की 21वीं सदी विकास की सदी है किंतु वह विकास की झलक हम नहीं देख पा रहे हैं। क्योंकि हम आज भी अपना जीवन वैसे ही यापन कर रहे हैं जैसे हमारे पूर्वज करते आए है। यह बहुत चिंता की बात है। क्षेत्रवासियों ने भी शासन-प्रशासन से क्षेत्र में मूलभूत समस्याओं के समाधान की मांग की है।

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