देहरादून। बेहद अनुशासित होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने अगले कुछ दिनों में पार्टी नेताओं को दायित्व दिए जाने की बात कह कर सरकारी सुख भोगने की आकांक्षा रखने वाले नेताओं की धुकधुकी बढ़ा दी है। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते और दूसरी बार लगातार प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के चलते नेताओं की आशाएं और अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं। वरना अब तक होता यह रहा है कि प्रदेश का चुनाव हारने की स्थिति में पार्टी का एक वर्ग दूसरी तरफ रुख कर जाता है। उत्तराखंड की जनता जैसे हर पांच साल में बदलाव करती रही लेकिन 2022 में इतिहास की परिपाटी बदलते हुए जनता ने भाजपा का ही राजतिलक कर डाला तो दायित्व की अपेक्षा भी बढ़ गई लेकिन डेढ़ साल का अरसा बीत जाने के बावजूद मुराद पूरी न होने पर अंदरखाने दबाव की राजनीति शुरू हो गई। उनमें से कुछ लोगों को पार्टी संगठन में खपा दिया गया लेकिन इसके बाद भी पार्टी कार्यकर्ताओं की बड़ी जमात अभी भी द्वार पर टकटकी लगाए हुए है।
पिछले साल मार्च में सीएम पुष्कर सिंह धामी के दोबारा सत्तारोहण के बाद से दर्जनों बार चर्चा रही कि जल्द ही दायित्व बंटने वाले हैं लेकिन हर बार नतीजा ढाक के तीन पात सिद्ध होता रहा। अब जबकि निकाय चुनाव भी सिर पर हैं, लोकसभा चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं तो पार्टी को एकजुट रखने का तात्कालिक जरिया दायित्व आवंटन ही बचता है। सो महेंद्र भट्ट ने गेंद सीएम धामी के पाले में डालते हुए कह दिया कि उनकी इस संबंध में सीएम से बात हो गई है और सीएम के प्रवास से लौटते ही दायित्व वितरण हो जायेगा। सीएम धामी का आगामी 25 सितम्बर से विदेश प्रवास का कार्यक्रम है। जाहिर है उससे पहले भाजपा के कुछ लोगों को दायित्व देने की घोषणा हो सकती है।
समझ लीजिए अगर अभी दायित्व नहीं बंटे तो यकीन मानिए मामला फिर लम्बा लटक सकता है। सरकार के लिए अगले दो तीन माह बेहद महत्वपूर्ण हैं। दिसम्बर में प्रदेश में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का कार्यक्रम है। इस कारण सरकार का पूरा फोकस इसी पर है। कोशिश यह भी है कि 2018 की तुलना में इस बार का आयोजन भव्य ही नहीं बल्कि सार्थक भी हो। यह अलग बात है कि आयोजन से जुड़े अधिकारी वही हैं जो तब भी थे, आज भी हैं। ऐसे में कितना निवेश राज्य में आएगा, यह भविष्य के गर्भ में है।
बहरहाल यहां चर्चा भाजपा में दायित्व वितरण की है। स्थिति यह है सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते दायित्व के दावेदारों की संख्या भी ज्यादा है। या यों कहें पार्टी में एक अनार सौ बीमार की स्थिति है। ठीक वही हाल है जैसे किसी एक सरकारी पद के लिए हजार आवेदक आते हैं, उसी तरह की स्थिति भाजपा में भी है। महेंद्र भट्ट ने इशारा किया है कि अभी सरकार में करीब 70 दायित्व रिक्त हैं लेकिन आवेदक गिनने लगेंगे तो यह संख्या नगण्य ही है। सबका साथ सबका विकास का नारा तो ठीक है लेकिन सबको संतुष्ट कर पाना आसान नहीं है। जाहिर है सीमित रिक्तियों की तुलना में असंख्य आवेदकों को छांटना मेंढक तोलने जैसा ही होता है। जिसकी।मुराद पूरी न हो पाए, उसे अपने साथ जोड़े रखना पार्टी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।
भाजपा बेशक कहे कि वह बेहद अनुशासित और संस्कारित पार्टी है और इसीलिए उसके नेता पार्टी विद डिफरेंस की बात भी करते हैं लेकिन सच तो यही है कि वर्षों से पार्टी की सेवा कर रहे लोग प्रतिफल की प्रत्याशा तो करते ही हैं। अगर ऐसा न होता तो पिछली सरकार में और अधिक न मिल पाने के कारण ही तो कुछ लोग पार्टी को गुड बॉय कह बैठे थे। अब न ऐसे लोग रहे न ही समय की सिद्धांत के लिए पार्टी से जुड़े हों। अब तो सीधा खेल है कि मिलेगा क्या? यही नहीं इससे एक कदम आगे की बात यह होने लगी है कि मैं आपके पास आऊंगा तो आप क्या दोगे, और आप मेरे पास आओगे तो क्या लेकर आओगे। बेशक भाजपा इस बात से इनकार करे लेकिन इसे युगधर्म कहो या शिष्टाचार। राजनीति सेवा कम और व्यापार तो ज्यादा ही सिद्ध हुई है। भाजपा इस बुराई से कितना बच सकती है? पाठक अंदाजा लगा सकते हैं।