बाजार में उपलब्ध सेनेटाइजर मानकों पर खरा नहीं- डा. शर्मा
1050 नमूनों में से 56 फीसद नमूनों में पर्याप्त मात्रा में नहीं मिला एल्कोहल
गुणवत्ता की जांच के लिए स्पेक्स संस्था ने सभी जिलों में चलाया अभियान
देहरादून । कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए सेनेटाइजर के प्रयोग को भी जरूरी बताया गया है। क्योंकि सेनेटाइजर से बार-बार हाथ साफ करने पर वायरस खत्म हो जाता है। कोरोनाकाल में बाजार में सेनेटाइजर की जबरदस्त डिमांड होने से खूब बिक्री भी हुई है। पर बाजार में उपलब्ध अधिकांश सेनेटाइजर मानकों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। इनमें ब्रांडेड कंपनियों द्वारा तैयार किया जा रहा सेनेटाइजर भी शामिल है। सेनेटाइजर की गुणवत्ता की जांच के लिए स्पेक्स संस्था ने बीती मई व जून में राज्य के सभी जिलों में टेस्टिंग अभियान चलाया। इस दौरान अलग—अलग स्थानों से सेनेटाइजर के 1050 नमूने एकत्र किए गए, जिसमें 578 नमूनों में एल्कोहल की प्रतिशत मात्रा मानकों के अनुरूप नहीं मिली है।
बुधवार को इस अभियान के संर्दभ में आयोजित पत्रकार वार्ता में स्पेक्स संस्था के सचिव डा. बृजमोहन शर्मा ने बताया कि एकत्र किए गए सेनेटाइजर के नमूनों में एल्कोहल प्रतिशत के साथ ही हाइड्रोजन परॉक्साइड, मेथेनॉल व रंगों की गुणवत्ता का परीक्षण भी प्रयोगशाला में किया गया। परीक्षण के दौरान 56 फीसद सेनेटाइजर में एल्कोहल मानकों के अनुरूप नहीं है। क्योंकि सेनेटाइजर में एल्कोहल की मात्रा 99.9 प्रतिशत होनी चाहिए। आठ नमूनों में मेथेनॉल पाया गया। वहीं 112 नमूनों में हाइड्रोजन परॉक्साइड की प्रतिशत मात्रा अधिक पाई गई। 278 नमूनों में टॉक्सिक रंग पाए गए। डा. शर्मा का कहना है कि सेनेटाइजर में पर्याप्त मात्रा में एल्कोहॉल की मात्रा नहीं होना भी राज्य में कोरोना संक्रमण के मामले बढऩे का एक कारण हो सकता है। सेनेटाइजर में रसायन युक्त कृतिम रंगों की मिलावट होने से त्वचा खराब हो सकती है। हाइड्रोजन परॉक्साइड भी लिपिड प्रति आक्सीकरण के माध्यम से साइटोटोक्सिक प्रभाव डाल सकता है। मेथेनॉल भी त्वचा को खराब करता है।
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