धर्म-संस्कृति

“जब-जब धर्म की हानि हुई, तब तब हुआ प्रभु का अवतार”

देहरादून। यह भारत देवभूमि है यहाँ अनेकों बार भगवान ने जब जब धर्म की हानि हुई तब-तब भगवान ने अवतार लिया और दुष्टों का संहार किया।
उक्त विचार आचार्य तुलसीराम पैन्यूली ने नेशविला रोड डोभालवाला में ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं के घर पर उनके स्वर्गीय पिताजी ईश्वरी दत्त ममगाईं की पूण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में व्यक्त करते हुए कहा कि पाखंडी स्वयं को भगवान बताकर अपनी पूजा करवा रहे हैं जिनसे आज सावधान रहने की आवश्यकता है। मनुष्य केवल भगवान का भक्त हो सकता है स्वयं भगवान नही। उन्होंने भक्ति के मूल का वर्णन करते हुए कहा कि भक्ति का भाव ह्रदय से उत्पन्न होता है जब आंतरिक प्रेम उत्पन्न होने लगता है और प्रभु नाम स्मरण बिना एक पल भी काटना मुश्किल होने लगे तब समझना चाहिए कि प्रभु प्राप्ति की ओर हम बढ़ने लगे हैं कथा को बार बार सुनना व संकीर्तन करना यही कल्याणकारी है और भागवत भी यही संदेश देता है उन्होंने भगवत चिन्तन में मन न लगने का कारण मन की चंचलता के साथ मनुष्य में इच्छा शक्ति की कमी को मुख्य कारण बताया यही कारण है कि आज सभी वर्ग के लोगों का टीवी में तो मन लगता है इसके सामने वह भोजन तक भूल जाते हैं जब तक मनुष्य की भगवान के प्रति आस्था नही होगी और उनके चरणों मे अनुराग के बीज प्रस्फुटित नही होंगे तब तक शांति और भगवान की प्राप्ति संभव नही है। कर्म ही धर्म है और कर्म ही पूजा है समाज मे आ रही गिरावट के लिए आज शिक्षा प्रणाली को दोषी बताया गौ हत्या को देश के लिए कलंक बताते हुए उन्होंने कहा कि जब तक देश मे गौ हत्या नही रुकेगी तब तक हम उन्नति को नही पा सकते !!
आचार्य ने प्रत्येक घर मे गौ सेवा व कन्या सुरक्षा को अनिवार्य बताया धर्मशास्त्र हमारे प्रेरणा के स्रोत हैं जो हमे अवनति से उन्नति की ओर ले जाने का कार्य करते हैं किंतु आज हम इन सबसे बिमुख होते जा रहे हैं आज चतुर्थ दिवस की कथा में भगवान कृष्ण जन्म की कथा को श्रवण कराते हुए आचार्य ने कहा शुद्व सत्व का नाम बसुदेव और देवमयी बुद्धि का नाम देवकी है। इन दोनों के मिलन से ही पार ब्रह्म का प्राकट्य होता है।


इस अवसर पर श्रीमती सुरजा देवी ममगाईं, ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं, पारेश्वर ममगाईं, राकेश ममगाईं, गिरीश ममगाईं, आचार्य भरत राम तिवारी , विद्वत सभा के पूर्व अध्यक्ष आचार्य अनुसूया प्रसाद देवली, मंजू ममगाईं ,आयुष ममगाईं, आयुषी ममगाईं, प्रेमा ममगाईं, गोलू ममगाईं, ऋषभ ममगाईं ,अमन ममगाईं, देवि प्रसाद ममगाईं, अनुपमा प्रसाद ममगाईं, कैलाश सुन्दरियाल, पंकज सुन्दरियाल, सुनिता सुन्दरियाल, शैलेन्द्री भट्ट, लक्ष्मी कोठारी, जयेंद्र सिंह नेगी,  अनिल नेगी, प्रसन्ना लखेड़ा, सुरेन्द्र सिंह असवाल, प्रियांशी ममगाईं, प्रियांक ममगाईं, शालिनि ममगाईं, निशा ममगाईं ,सुदेखना बहुगुणा, मुरली धर सेमवाल, विनोद नैथानी, उर्मिला, मेहरा आनद,  दामोदर सेमवाल, शुभम सेमवाल, आचार्य सत्य प्रसाद सेमवाल, आचार्य संदीप बहुगुणा, आचार्य द्वारिका नौटियाल,आचार्य दिवाकर भट्ट, कमल रामानुजाचार्य, आचार्य प्रेम ममगाईं, कैलाश थपलियाल,आचार्य विजेंद्र ममगाईं, आचार्य भानु प्रसाद आदि मौजूद थे।

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